वाराणसी: स्वयंसेवी संस्था मोतीलाल मानव उत्थान समिति के तत्वावधान में 11 नवंबर को 29वां पुस्तक मेला समारोह का शुभारंभ कुशवाहा भवन में हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ. सुरेंद्र नाथ पाल, सहायक निदेशक, सूचना विभाग ने उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए पुस्तकों के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि "पुस्तकों के प्रति अनुराग बढ़ाएं और ज्ञान को सद्गुण समझें। अधिक से अधिक ज्ञान हमें जीवन जीने की कला सिखाता है।" डॉ. पाल ने वेदांत दर्शन को सर्वोत्तम मार्ग बताते हुए कहा कि "पुस्तकें हमें महापुरुषों के जीवन से परिचित कराती हैं और उनके विचारों का संचार हमारे अंदर करती हैं। भगवान का साम्राज्य हमारे भीतर है और पुस्तकों के माध्यम से हम इसे महसूस कर सकते हैं।"
उन्होंने महात्मा गांधी के अहिंसा के प्रति झुकाव को उनकी पुस्तकों के प्रति गहरी लगन से जोड़ा। उन्होंने शहीद भगत सिंह का उदाहरण देते हुए बताया कि जेल में अंतिम समय में भी भगत सिंह पुस्तकों का अध्ययन कर रहे थे, जो पुस्तकों की उनके जीवन में विशेष भूमिका को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि "पुस्तकें हमारे सच्चे और विश्वसनीय मित्र हैं। यह पुस्तक मेला ज्ञान देने और बांटने का एक अनमोल माध्यम है। इंटरनेट पर सभी किताबें उपलब्ध हैं, लेकिन पुस्तकों से मिलने वाला आत्मिक उत्थान केवल पढ़ने के अनुभव से ही संभव है।"
विशिष्ट अतिथि डॉ. लालजी,सहायक निदेशक, केंद्रीय संचार ब्यूरो,भारत सरकार, ने पुस्तक मेले के आयोजन को एक "महायज्ञ" की संज्ञा दी। उन्होंने कहा कि इस यज्ञ में हर किसी को आहुति देने की आवश्यकता है ताकि ज्ञान अर्जित कर सकें और अपने जीवन को इस तरह बनाएं कि दूसरों के साथ भी ज्ञान बांट सकें। उन्होंने पुस्तकों के अध्ययन और उसके विस्तार के महत्व पर भी बल दिया।
मेले में वरिष्ठ पत्रकार दयानंद ने एक विशेष मांग उठाई। उन्होंने कहा कि "बनारस में कभी हर गली और मोहल्ले में लाइब्रेरी होती थी, जो अब लुप्तप्राय हो चुकी है। हमें इन लाइब्रेरियों के अस्तित्व को पुनर्जीवित करने की जरूरत है, ताकि अधिक से अधिक लोग पुस्तकों के प्रति जुड़ सकें और अध्ययन का संस्कार पुनर्जीवित हो सके।"
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. बाला लखेद्र ने बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखने और मोबाइल का सीमित उपयोग करने पर बल दिया। उन्होंने बच्चों को डिक्शनरी पढ़ने की आदत डालने का सुझाव दिया ताकि वे अपने ज्ञान को स्वयं विकसित कर सकें। उन्होंने कहा कि "महत्वपूर्ण अवसरों जैसे विवाह और जन्मदिन पर पुस्तक भेंट करनी चाहिए। भारत की सांस्कृतिक विरासत समृद्ध है, और इसे पुस्तकों के माध्यम से और भी सशक्त बनाया जा सकता है।" डॉ. लखनदार ने विशेष रूप से बेटियों को सशक्त बनाने की आवश्यकता पर भी बल दिया और कहा, "पढ़ोगे तो शासन बनोगे, नहीं तो शोषण के शिकार बनोगे।"
इस अवसर पर प्रमुख हस्तियों में पंकज श्रीवास्तव, लालजी मोर, लालचंद कुशवाहा, अमरनाथ कुशवाहा, संदीप कुमार और कई पत्रकार उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन एवं समन्वय वरिष्ठ अधिवक्ता मिथलेश कुशवाहा ने किया।
29वां पुस्तक मेला एक बार फिर से बनारस की सांस्कृतिक और बौद्धिक धरोहर को संजोने और ज्ञान को बढ़ावा देने का सशक्त मंच बनकर उभरा है।